शनिवार, 9 अक्टूबर 2021

देख कृष्ण के नील वदन को, नीलगगन मुस्कुरा रहा था l केशव के सिर मोरमुकुट लख, कामदेव भी लजा रहा था - राजेश कुमार सिंह


देख कृष्ण के नील वदन को,
नीलगगन मुस्कुरा रहा था l
केशव के सिर मोरमुकुट लख,
कामदेव भी लजा रहा था l

अधरों की लाली को लख कर,
लाल कमल मुश्काया है l
मुरलीघर की मुरली धुन सुन,
स्वर सरगम संग गाया है ll

श्री कृष्णा का पीत बसन भी,
मां का आँचल सजा रहा था l
देख कृष्ण के नील वदन को,
नीलगगन मुस्कुरा रहा था l

गोकुल मथुरा दोनों मिलकर ,
बरसाने को रिझा रहे थे l
वृन्दावन के कदम वृक्ष पर,
धूम कन्हैया मचा रहे थे ll

झूम रहीं थीं, राधा रानी,
प्यारा बंसी बजा रहा था l
देख कृष्ण के नील वदन को,
नीलगगन मुस्कुरा रहा था l

गोपी के संग रास रचाता,
ग्वाल बाल संग गाता है l
दूध दही और मख्खन, मिश्री,
बड़े चाव से ख़ाता है ll

गोप गोपियों का पागलपन,
बनवारी को नचा रहा था ll
देख कृष्ण के नील वदन को,
नीलगगन मुस्कुरा रहा था l

ठुमुक ठुमुक और घूम धूम कर,
मोहन कोलाहल करते l
मा यशुदा को कृष्ण कन्हैया
गोदी आ आलिंगन करते ll

लाला के कदमो को छू कर,
पायल खुद को बजा रहा था ll
देख कृष्ण के नील वदन को,
नीलगगन मुस्कुरा रहा था ll

©®राजेश कुमार सिंह "श्रेयस"
लखनऊ, उप्र


वैसे मै अगेय कविताएं लिखता हुँ.. लेकिन मेरी यह रचना लयबद्ध और गेय है.ऐसा मुझे लगता है..



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