चलो चलें अब अपने गाँव,
चलो चलें अब अपने गाँव
बचपन जहाँ बुलाता है,
वह दौर ही मन को भाता है।
आज मतलबी इस दुनिया से
जी अपना घबराता है।।
याद बहुत आता है मुझको
उस बूढ़े पीपल की छाँव।
चलो चलें अब अपने गाँव, चलो चलें ------ गाँव।।
यही कहानी सब कहते
क्या-क्या नहीं दर्द सहते।
सड़को औ चौराहो पर
कैसे गंवईं जन है रहते ।।
याद सताती मातृभूमि की
यहाँ कर लिये खूब पड़ाव।
चलो चलें अब अपने गाँव, चलो------ गाँव।।
जहाँ बाग में मीठे आम
वहाँ की प्यारी होती शाम।
मेरे बाबू जी किसान हैं
खेतों में करते हैं काम।।
दियारे में गउवें चरती हैं
जहाँ नदी में चलती नाव।
चलो चलें अब अपने गाँव, चलो---------–-गाँव।।
शहर की चकाचौंध खोटी है
अपने घर मे भी रोटी है।
शहरों की औकात ही कितनी
माँ की ममता से छोटी है ।।
मुझे मिलेगा स्वर्ग वहीं पर
जहाँ पड़े मेरी माँ के पाँव।
चलो चलें अब अपने गाँव, चलो ----------------गाँव।।
अपना गाँव सजायेंगे हम
सुंदर उसे बनायेगे हम।
मेरा हृदय गाँव में बसता
लोगों को बतलायेंगे हम।।
वही हमारी कर्मभूमि है
जहाँ हमारा गाँव-गिरांव।
चलो चलें अब अपने गाँव, चलो -----------------गाँव।।
रचना- लव तिवारी
विशेष सहयोग - आदरणीय गुरु जी "शिब्बू गाजीपुरी"
ग्राम पोस्ट- युवराजपुर जिला- ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश २३२३३२