शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं तो उनके शिक्षक महामना को राष्ट्रगुरु से कम क्या कहा जा सकता है

कोटिशः नमन महामना को
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टाइम ऐनेलाजर देवेश दुबे की स्मृतियों में अपनी पूज्या दादी ( मेरी ताई जी, महामना की नतिनी , गार्गी मालवीय दुबे ) की बस एक झलक भर है । देवेश ने उनसे ही महामना के बारे में बहुत कुछ जाना था । तब वह बीमार रहा करती थीं । यह शुभ संकेत है कि ग्लोबल गांव के नये नागरिक , जेनरेशन नेक्स्ट में अपनी जड़ पहचानने की ललक है ।

मालवीय जी का यह वक्तव्य अमेरिका के डॉ. गुलाम मुर्तजा शरीफ के एक लेख से है महामना ने यह भाषण 12 अप्रैल 1924 को लाहौर में दिया था । यह भी देवेश ने खोजा है --'' .... भारत केवल हिंदुओं का देश नहीं है । यह तो मुस्लिम , इसाई और पारसियों का भी देश है । यह देश तभी समुन्नत और शक्तिशाली हो सकता है जब भारतवर्ष की विभिन्न जातियां और यहां के विभिन्न सम्प्रदाय , पारस्परिक सद् भाव और एकात्मता के साथ रहें । जो लोग इस एकता को भंग करने का प्रयास करते हैं , वे केवल अपने देश के ही नहीं अपनी जाति के भी शत्रु हैं । ..''

नरम - गरम दलों के बीच की कड़ी मालवीय जी ही थे , जो गांधी युग की कांग्रेस में हिन्दू - मुसलमान और उसके विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में सफल रहे । एनी बेसेंट ने कहा --
'' ...मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि विभिन्न मतों के बीच केवल मालवीय जी भारतीय एकता की मूर्ति बनकर खड़े हैं ।'  कांग्रेस ने उन्हें 1909 ,1918 ,1931और 1933 में अपने चार अधिवेशनों के लिए अध्यक्ष निर्वाचित किया । महामना का देहावसान 12 नवम्बर 1946 को हुआ । काशी हिंदू विश्वविद्यालय उनकी ही स्थापना है ।

याद आ रहे हैं बिस्मिल इलाहाबादी --
'' मंजिले उल्फ़त का सच्चा रहनुमा है मालवी ..
मौजे गम में डूब सकती ही नहीं कश्ती - ए - कौम  
क्या खुदा की शान है
अब नाखुदा है मालवी 

आस्तित्वगत संघर्षो का नया पोलिटिकल नरेटिव विकसित करने के लिए देशभर में किसी  ' जय परशुराम यात्रा ' के संयोजक भार्गव रविशंकर तिवारी और ' भारत संस्कृति न्यास ' के अध्यक्ष भार्गव संजय तिवारी ने  इसीलिए महामना मालवीय के व्यक्तित्व को देखते हुए , उन्हें 
' राष्ट्रगुरु ' की उपाधि से नवाजे जाने की मांग की है । अगर महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं तो उनके शिक्षक महामना को राष्ट्रगुरु से कम क्या कहा जा सकता है ।



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