रविवार, 27 दिसंबर 2020

गाज़ीपुर जिले के युवराजपुर ग्राम के अन्तराष्ट्रीय वॉलीबाल खिलाड़ी स्वर्गीय रामबली सिंह - संजय सिंह व सुशील तिवारी

#bhu
#डॉ._रामबली_सिंह_bhu
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संजय सिंह के द्वारा बतायें गयीं कुछ और बातें

स्व डॉ रामबलि सिंह जी का जन्म युवराजपुर में ,विकास ,यू पी कॉलेज में ,ज्ञान और सम्मान बी यच यू में प्राप्त किये थे ,या ये का सकते हैं उनकी आत्मा यू पी कॉलेज में निवास करती है क्लास 11 12वी , यानि आठ नव वर्ष यूपी कॉलेज में रहते हुए हाफ स्टेप जम्प का रिकार्ड बनाये (उढा कूद)आज भी हैं जीवन के सर्वोच्च ऊँचाई पर रहने के बाद यहीं पर शरीरिक शिक्षा के प्रधान अध्यक्ष पद पर रहे, हमारे पिता जी श्री तारा सिंह जी के साथ 3rd होस्टल के एक कमरे को हमारे पिता जी आपने साथ रखा था उनको ये पद उस समय के प्रचार्य डॉ राजनाथ सिंह जी से एक पोस्ट गठित करवाया गया था उस समय डॉ रामबली सिंह जी को यू पी कॉलेज में हर कुछ कॉलेज मुफ्त में, दूध, घी, अंडा, खाना कॉलेज के प्रबंधन से उपलब्ध था वो यू पी कॉलेज के आल गेम कैप्टन एवँ ब्रांड एंबेसडर थे पूरा यू पी कॉलेज परिवार उनको अपना बेटा समझता था परन्तु बी एच यू में बड़ा पद ओहदा की वजह से नहीं चाहते हुए भी जाना पड़ा था यही कुछ स्व विश्वम्भर सिंह जी के साथ भी हुआ था मेरे पिता जी ने सभी सीमा तोड़ कर उनका अपॉइंटमेंट करवा दिया था परन्तु पद अस्थायी था सी आर पी एफ़ में पद ओहदा बड़ा होने के कारण वो भी गए थे दोनों ही हमारे पिता के बहुत ही प्रिय थे आज दोनो ही नहीं है उनको ये दुख आज भी है कि काश मै जाने नहीं दिया होता, परन्तु नियती जिसको जहाँ ले जाना चहती है ले ही जाती है अंतिम समय तक ये दोनों लोगों का आना जाना यू पी कॉलेज में रहा था ।🙏

सुशील तिवारी जी ग्राउंड रिपोर्टिंग के बाद -

एक ऐसा नाम जिन्होंने कभी भी नहीं चाहा कि वह मीडिया के सामने आए उन्होंने एक साधारण मनुष्य की तरह बहुत सारे रिकॉर्ड अपने बल पर अर्जित किए और इन्होंने जो काम कर दिया शायद अब यह कोई नहीं कर पाएगा मगर दुख होता है नहीं उनके नाम पर इनके गांव में ना जिले में कहीं पर भी ना ही कोई स्मारक है ना ही कोई स्टेडियम यह गाजीपुर जिले के ग्राम सभा युवराजपुर के रहने वाले हैं और जिन्होंने 1971 में भारत के लिए खेला और वर्मा के खिलाफ और मैच था बहुत सारी उपलब्धियां इन्होंने अर्जित की जो कि शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता इन आदरणीय महान व्यक्तित्व के बीएचयू में फोटो लगे हुए हैं और इसके बारे में भारतीय वालीबॉल टीम के वर्तमान चयन समिति के प्रमुख डा. अभिमन्यु सिंह ने इनके बारे में बताया मैं अनुरोध करूंगा हाथ जोड़कर आप सब से मैं सुशील तिवारी आप जरूर इसे शेयर करें मैं गाजीपुर जिला अधिकारी से लेकर बड़े माननीय नेताओं से भी अनुरोध करूंगा कम से कम युवा खिलाड़ियों के बारे में जानकारी लें उन्होंने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की जो कोई भी नहीं कर सकता मेरा पूरा प्रयास है उन महान महापुरुषों के बारे में बताने के लिए जहां पर बड़े-बड़े चैनल जाना नहीं चाहते मैं एक बहुत ही छोटा सा और साधारण परिवार से हूं और मैं एक यूट्यूब पर हूं यह जितनी जानकारी है आप लोग बुलाएंगे मैं जरूर आऊंगा मेरा नंबर ले सकते हैं मेरा नंबर है 9473 86 74 34 एक बार आप अपने भाई को अपने बेटे को अपने दोस्त को याद करें मैं अपना पूरा प्रयास करूंगा इसके साथ ही मैं भारत के सभी मैचों को दिखाता हूं अपने चैनल से सभी खेलों के एक बार आप मुझे कमेंट्री का मौका दें मैं आप सब को निराश नहीं करूंगा मेरा प्रयास है उत्तर प्रदेश के हर एक गांव में जाऊं जहां तक हो सके युवाओं को उभारने का काम करो इनकी उपलब्धि बहुत बड़ी है अतः मैं चाहूंगा स्वर्गीय डॉक्टर रामबली सिंह जी के ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और आदरणीय भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी तक पहुंचा योगी जी तक पहुंचा आप सब के चरणों में प्रणाम आप सबका सुशील तिवारी


































शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं तो उनके शिक्षक महामना को राष्ट्रगुरु से कम क्या कहा जा सकता है

कोटिशः नमन महामना को
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टाइम ऐनेलाजर देवेश दुबे की स्मृतियों में अपनी पूज्या दादी ( मेरी ताई जी, महामना की नतिनी , गार्गी मालवीय दुबे ) की बस एक झलक भर है । देवेश ने उनसे ही महामना के बारे में बहुत कुछ जाना था । तब वह बीमार रहा करती थीं । यह शुभ संकेत है कि ग्लोबल गांव के नये नागरिक , जेनरेशन नेक्स्ट में अपनी जड़ पहचानने की ललक है ।

मालवीय जी का यह वक्तव्य अमेरिका के डॉ. गुलाम मुर्तजा शरीफ के एक लेख से है महामना ने यह भाषण 12 अप्रैल 1924 को लाहौर में दिया था । यह भी देवेश ने खोजा है --'' .... भारत केवल हिंदुओं का देश नहीं है । यह तो मुस्लिम , इसाई और पारसियों का भी देश है । यह देश तभी समुन्नत और शक्तिशाली हो सकता है जब भारतवर्ष की विभिन्न जातियां और यहां के विभिन्न सम्प्रदाय , पारस्परिक सद् भाव और एकात्मता के साथ रहें । जो लोग इस एकता को भंग करने का प्रयास करते हैं , वे केवल अपने देश के ही नहीं अपनी जाति के भी शत्रु हैं । ..''

नरम - गरम दलों के बीच की कड़ी मालवीय जी ही थे , जो गांधी युग की कांग्रेस में हिन्दू - मुसलमान और उसके विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में सफल रहे । एनी बेसेंट ने कहा --
'' ...मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि विभिन्न मतों के बीच केवल मालवीय जी भारतीय एकता की मूर्ति बनकर खड़े हैं ।'  कांग्रेस ने उन्हें 1909 ,1918 ,1931और 1933 में अपने चार अधिवेशनों के लिए अध्यक्ष निर्वाचित किया । महामना का देहावसान 12 नवम्बर 1946 को हुआ । काशी हिंदू विश्वविद्यालय उनकी ही स्थापना है ।

याद आ रहे हैं बिस्मिल इलाहाबादी --
'' मंजिले उल्फ़त का सच्चा रहनुमा है मालवी ..
मौजे गम में डूब सकती ही नहीं कश्ती - ए - कौम  
क्या खुदा की शान है
अब नाखुदा है मालवी 

आस्तित्वगत संघर्षो का नया पोलिटिकल नरेटिव विकसित करने के लिए देशभर में किसी  ' जय परशुराम यात्रा ' के संयोजक भार्गव रविशंकर तिवारी और ' भारत संस्कृति न्यास ' के अध्यक्ष भार्गव संजय तिवारी ने  इसीलिए महामना मालवीय के व्यक्तित्व को देखते हुए , उन्हें 
' राष्ट्रगुरु ' की उपाधि से नवाजे जाने की मांग की है । अगर महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं तो उनके शिक्षक महामना को राष्ट्रगुरु से कम क्या कहा जा सकता है ।



गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

क्या जिस्म से बढ़कर कुछ भी एक स्त्री में तुझको दिखा नहीं - अज्ञात

क्यों मांस के लोथड़ों के आगे......
शर्मसार हो जाती है नैतिकता तेरी,
क्या जिस्म से बढ़कर कुछ भी....
एक स्त्री में तुझको दिखा नहीं ।

हर रोज़ कांपती है रूह मेरी....
तेरे घिनौने कृत्यों को सुनकर,
हाय ! मैं तो अपराधिनी हो गई हूं स्त्री होकर ।।

तू जानवर से भी जंगली बन गया है कैसे ??
सवाल कर जरा ख़ुद से अभी दो घड़ी ठहरकर...

फिर आज रो रही है हर आंखे....
तूफानों का बवंडर सा है,
हाय स्तब्ध हूं मैं ! ये कैसी दुर्दशा हो गई ।

मुझे ही पूजता है न तू....
मुझसे ही है उत्पत्ति तेरी ।
मत भूलना ये भूलकर भी कि,
ये अस्तित्व किससे है तेरा ???

नारीवाद - पुरुषवाद का है यह प्रपंच नहीं.....
पर सुरक्षित ज़मीन - खुला आसमान,
मुझे मेरे हिस्से का क्यों नहीं....????

सवालों का एक ढेर सा है...
इस तथाकथित सभ्य समाज से भी,
तेरे सिद्धांत, नियम, कानून सब मौन क्यों हो जाते यहीं ???
तू धर्म राजनीति की बातों में तो,
खूनी जंग कर जाता है ना, पर.....
मेरे हर सवालों पर मर्यादित रहने को कहते हैं क्यों सभी???

मत भूलना ये भूलकर भी....
अगर सृजन कर सकती हूं तेरा,
तो विध्वंशक भी बन सकती हूं तेरी ।

मर्यादा लिहाज़ शब्दों को अब पड़ेगा मुझे तोड़ना....
बस अब और नहीं बर्दाश्त मुझे,
नहीं बर्दाश्त है मुझे ये असहनीय वेदना ।
नहीं बर्दाश्त है मुझे ये असहनीय वेदना ।।
                                                        ~संस्कृति





बुधवार, 23 दिसंबर 2020

गेहूं बड़ा या गुलाब राजनीति को दुरुस्त राह लाने वाला एक्टिविस्ट साहित्यकार- रामवृक्ष बेनीपुरी

राजनीति को दुरुस्त राह लाने वाला एक्टिविस्ट साहित्यकार
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रामवृक्ष बेनीपुरी
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जन्मतिथि: 23 दिसम्बर (1899 )
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'.... गेहूं हम खाते हैं, गुलाब सूंघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्‍त होता है। गेहूं बड़ा या गुलाब? हम क्‍या चाहते हैं - पुष्‍ट शरीर या तृप्‍त मानस? या पुष्‍ट शरीर पर तृप्‍त मानस?

जब मानव पृथ्‍वी पर आया, भूख लेकर। क्षुधा, क्षुधा, पिपासा, पिपासा। क्‍या खाए, क्‍या पिए? मां के स्‍तनों को निचोड़ा, वृक्षों को झकझोरा, कीट-पतंग, पशु-पक्षी - कुछ न छुट पाए उससे ! गेहूं - उसकी भूख का काफला आज गेहूं  पर टूट पड़ा है? गेहूं उपजाओ, गेहूं  उपजाओ, गेहूं उपजाओ !

मैदान जोते जा रहे हैं, बाग उजाड़े जा रहे हैं - गेहूं के लिए। बेचारा गुलाब - भरी जवानी में सि‍सकियां ले रहा है। शरीर की आवश्‍यकता ने मानसिक वृत्तियों को कहीं कोने में डाल रक्‍खा है, दबा रक्‍खा है।

किंतु, चाहे कच्‍चा चरे या पकाकर खाए - गेहूं तक पशु और मानव में क्‍या अंतर? मानव को मानव बनाया गुलाब ने! मानव मानव तब बना जब उसने शरीर की आवश्‍यकताओं पर मानसिक वृत्तियों को तरजीह दी। यही नहीं, जब उसकी भूख खाँव-खाँव कर रही थी तब भी उसकी आंखें गुलाब पर टंगी थीं।

उसका प्रथम संगीत निकला, जब उसकी कामिनियाँ गेहूं को ऊखल और चक्‍की में पीस-कूट रही थीं। पशुओं को मारकर, खाकर ही वह तृप्‍त नहीं हुआ, उनकी खाल का बनाया ढोल और उनकी सींग की बनाई तुरही। मछली मारने के लिए जब वह अपनी नाव में पतवार का पंख लगाकर जल पर उड़ा जा रहा था, तब उसके छप-छप में उसने ताल पाया, तराने छोड़े ! बाँस से उसने लाठी ही नहीं बनाई, वंशी भी बनाई।......'

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बेनीपुरी  जी को मैं प्रेमचंद के बाद का दूसरा प्रेमचंद मानता हूं। लेखक शिवपूजन सहाय जी कहते थे – ‘ बेनीपुरी का लिखा गद्य चपल खंजन की तरह फुदकता हुआ चलता है ।' लेकिन  यह तो केवल शैलीगत विशिष्टता की तारीफ है। दरअसल बेनीपुरी जी का व्यक्तित्व ही सौंदर्य और यथार्थ यानी गेहूं और गुलाब का समन्वय था । वह मेहनत और जी जान से जीने की दांत पर दांत चढ़ी कोशिश के सौंदर्य के विरल गद्यकार थे ।

बेनीपुरी जी राजनीतिक थे । डॉ. लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ नेपाल क्रांति में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा । साहित्य जैसा कि मैं मानता हूं सुसंस्कृत राजनीति ही है । इसीलिए रामवृक्ष बेनीपुरी जी राजनीति में थे तो लेकिन उनके भीतर का राजनीतिक कहानीकार को राह नहीं बताता था , हां उनका कहानीकार राजनीति को जरूर ' करेक्ट ' करता रहता था ।

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वह उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और नाटककार के साथ ही विचारक, चिंतक  क्रान्तिकारी और पत्रकार थे। उनका जन्म 23 दिसम्बर, 1899 को बेनीपुर  गाँव,मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार )में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई गाँव की पाठशाला में ही हुई । बाद की पढ़ाई  मुज़फ़्फ़रपुर कॉलेज से ।

इसी समय महात्मा गाँधी ने ‘रौलट एक्ट’ के विरोध में ‘असहयोग आन्दोलन’ शुरू  किया।  बेनीपुरी जी ने भी पढ़ाई छोड़ी और स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गये । कई बार जेल कई  सज़ा काटी । कूल आठ साल जेल में रहे। समाजवादी आन्दोलन से रामवृक्ष बेनीपुरी का निकट का सम्बन्ध था। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के समय जयप्रकाश नारायण के हज़ारीबाग़ जेल से भागने में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनका साथ दिया और उनके निकट सहयोगी रहे।
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रचनाएं
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उपन्यास – पतितों के देश में, आम्रपाली
कहानी संग्रह – माटी की मूरतें
निबंध – चिता के फूल, लाल तारा, कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब, जंजीरें और दीवारें
नाटक – सीता का मन, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँवों के देवता, नया समाज, विजेता, बैजू मामा
संपादन – विद्यापति की पदावली

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रामधारी सिंह दिनकर ने एक बार बेनीपुरीजी के विषय में कहा था कि- ' स्वर्गीय पंडित रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी, जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है। वे उस आग के भी धनी थे, जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है। जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है। बेनीपुरीजी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे।...'




कवने खोंतवा में लुकइलू, आहि रे बालम चिरई आहि रे बालम चिरई जन्म दिवस विशेष -भोलानाथ गहमरी

भोलानाथ गहमरी
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जन्मतिथि: 19 दिसंबर ( 1923 )
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लोक धुनों पर आधारित गहमरी जी के गीतों में आंचलिक यानी माटी की आत्मा मुखर होती है । उनके हिंदी गीतों की पहली किताब 'मौलश्री' का प्रकाशन 1959 में हुआ ।1969 में भोजपुरी का उनका पहला गीत-संग्रह 'बयार पुरवइया' प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखी । उनका दूसरा भोजपुरी गीत-संग्रह 'अंजुरी भर मोती' 1980 में प्रकाशित हुआ । इस किताब की भूमिका अजीमुश्शान शायर रघुपति सहाय 'फिराक' गोरखपुरी ने लिखा था। फिराक साहब गहमरी जी के भोजपुरी गीतों से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें कहना पड़ा -- जो मिठास भोजपुरी में है वो दुनिया की किसी भाषा में नहीं।

'सजना के अंगना', 'बबुआ हमार', 'बैरी भइल कंगना हमार', 'बहिना तोहरे खातिर' आदि भोजपुरी फिल्म के अलावे, उत्तर प्रदेश सरकार के चलचित्र विभाग के फिल्म 'विवेक' और 'सबेरा' के गीत और संवाद गहमरी जी ही ने लिखे हैं। इसके लिए उन्हें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी व उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बी. सत्यनारायण रेड्डी के हाथों पुरस्कृत किया जा चुका है।

गहमरी जी का अधिकांश गीत-सृजन लोक-धुन पर होता था। भोजपुरी के सुप्रसिद्ध लोक-गायक मुहम्मद खलील ने जिंदगीभर भोलानाथ गहमरी के गीत गाये ।

उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले ने माटी की कई अनमोल रत्न दिये । डॉ. विवेकी राय, श्रीकृष्ण राय ‘हृदयेश’, भोलानाथ गहमरी, गिरिजाशंकर राय ‘गिरिजेश’, सरोजेश गाजीपुरी, प्राध्यापक अचल, गजाधर शर्मा ‘गंगेश’, रामवचन शास्त्री ‘अँजोर’, आनन्द सन्धिदूत, हरिवंश पाठक ‘गुमनाम’, वंशनारायण सिंह ‘मनज’, विनय राय आदि ने भोजपुरी के रचनात्मक आंदोलन को उल्लेखनीय ऊंचाई दी ।

गहमरी की कलम ने भोजपुरी के अमर और अदभुत गीत लिखे । ‘भीजे जो अँचरा त भीजे हो, कहीं भींजे ना कजरा’, ‘गोरिया कवना घाटे दुइ-दुइ भरेलू गगरी’, ‘एक साँस झाँके खिड़की खोलि हबेली, गंध छितिरावे जइसे चम्पा-चमेली’ आदि अविस्मरणीय हैं । वह रूप-रस-गंध के सप्राण, हमारी युगीन चेतना और भाव-बोध के कवि थे ।

वरिष्ठ लोकधर्मी पत्रकार रविशंकर तिवारी जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भोजपुरिया मानस के प्रतिनिधि हैं, ख्यात टाइम एनेलाइजर देवेश दुबे के साथ लोक वीथिका की तैयारी कर रहे हैं । अपनी जातीय स्मृतियों को जगाना अपने अस्तित्वबोध और खुद की डिस्कवरी भी है । उन्होंने कहा - नये साल 2021 में फगुआ के आस - पास ही हम सब दिल्ली में जुटेंगे, कार्यक्रम स्थल का नाम होगा - महेंदर मिसिर नगर ।

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कवने खोंतवा में लुकइलू, आहि रे बालम चिरई
आहि रे बालम चिरई

बन-बन ढुँढ़लीं ढ़ली दर-दर ढुँढ़लीं
ढुँढ़ली नदी के तीरे
साँझ के ढुँढ़लीं, रात के ढुँढ़लीं
ढुँढ़ली होत फजीरे
मन में ढुँढ़लीं, जन में ढुँढ़लीं
ढुँढ़ली बीच बजारे
हिया-हिया में पइठि के ढुँढ़लीं
ढुँढ़लीं बिरह के मारे
कवने अँतरा में समइलू, आहि रे बालम चिरई
आहि रे बालम चिरई

गीत के हम हर कड़ी से पुछलीं
पुछलीं राग मिलन से
छंद-छंद लय-ताल से पुछलीं
पुछलीं सुर के मन से
किरिन-किरिन से जा के पुछलीं
पुछलीं नील गगन से
धरती औ पाताल से पुछलीं
पुछलीं मस्‍त पवन से
कवने सुगना पर लोभइलू, आहि रे बालम चिरई
आहि रे बालम चिरई

मंदिर से मसजिद तक देखलीं
गिरिजा से गुरुद्वारा
गीता अउर कुरान में देखलीं
देखलीं तीरथ सारा
पंडित से मुल्‍ला तक देखलीं
देखलीं घरे कसाई
सगरी उमिरिया छछनत जियरा
कब ले तोहके पाईं
कवने बतिया पर कोहँइलू, आहि रे बालम चिरई
              आहि रे बालम चिरई



गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

अपनी मोहब्बत की फ़रियाद किससे करे। तुम हो उदास अब हम बात किससे करे।- लव तिवारी

अपनी मोहब्बत की फ़रियाद किससे करे।
तुम हो उदास अब हम बात किससे करे।।

कह दो न कि तुम आयी हो दुनिया मे मेरे लिए।
वर्ना इस तड़पते दिल की हालात किससे कहे।।

आदमी मैं भी बुरा नही तुमको चाहने वाला।
इस बेचैन अरमानों की दास्तान अब किससे कहे।।

मुझपर रहम करो तुम ही तो अब मेरे मसीहा ।
तुम्हारे दर को छोड़कर ये फ़रियाद किससे करे।।

रचना - लव तिवारी
ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश





बुधवार, 16 दिसंबर 2020

कुत्ते भी शौक से पालिए। लेकिन घर से बूढ़ी माँ को न बिसारिये- लव तिवारी

निगेटिव रिपोर्ट का कमाल —

10 दिन की जद्दोजहद के बाद एक आदमी अपनी कोरोना नेगटिव की रिपोर्ट हाथ में लेकर अस्पताल के रिसेप्शन पर खड़ा था।

आसपास कुछ लोग तालियां बजा रहे थे, उसका अभिनंदन कर रहे थे।

जंग जो जीत कर आया था वो।

लेकिन उस शख्स के चेहरे पर बेचैनी की गहरी छाया थी।
गाड़ी से घर के रास्ते भर उसे याद आता रहा "आइसोलेशन" नामक खतरनाक और असहनीय दौर का वो मंजर।

न्यूनतम सुविधाओं वाला छोटा सा कमरा, अपर्याप्त उजाला, मनोरंजन के किसी साधन की अनुपलब्धता, कोई बात नही करता था और न ही कोई नजदीक आता था। खाना भी बस प्लेट में भरकर सरका दिया जाता था।

कैसे गुजारे उसने वे 10 दिन, वही जानता था।

घर पहुचते ही स्वागत में खड़े उत्साही पत्नी और बच्चों को छोड़ कर वह शख्स सीधे घर के एक उपेक्षित कोने के कमरे में गया, जहाँ माँ पिछले पाँच वर्षों से पड़ी थी । माँ के पावों में गिरकर वह खूब रोया और उन्हें लेकर बाहर आया।

पिता की मृत्यु के बाद पिछले 5 वर्षों से एकांतवास (आइसोलेशन )भोग रही माँ से कहा कि माँ आज से आप हम सब एक साथ एक जगह पर ही रहेंगे।

माँ को भी बड़ा आश्चर्य लगा कि आख़िर बेटे ने उसकी पत्नी के सामने ऐसा कहने की हिम्मत कैसे कर ली ? इतना बड़ा हृदय परिवर्तन एकाएक कैसे हो गया ? बेटे ने फिर अपने एकांतवास की सारी परिस्थितियाँ माँ को बताई और बोला अब मुझे अहसास हुआ कि एकांतवास कितना दुखदायी होता है ?

बेटे की नेगटिव रिपोर्ट उसकी जिंदगी की पॉजिटिव रिपोर्ट बन गयी ।