कुछ दो तरकीब की जिंदगी बसर कर सकूं।
बहुत लंबी है सफ़र मै धीरे धीरे चल संकु।।
इस बुरे वक़्त में अच्छे बुरे दोनो परेशान है।
इतना दो क़ाबलियत की गरीबों की मदद कर संकु।।
मुझमे भी है बुराइयां में इंसान हूँ भगवान नही ।
जो ख़ुदा बने बैठे है उनमे इंसानियत भर सकुं।।
तुझपर जो भरम था वो टूट गया तेरी बेवफाई से।
इतनी तो सोहरत मिली कि तुम्हें सोच के मर संकु।।
रचना- लव तिवारी
दिनांक- 17- मई- 2020
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