गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

COVID 19 में दो गुटों में बटी पत्रकारिता और देश के साथ देश की जनता का भी बड़ा नुकसान- लव तिवारी

जिस प्रकार कुछ लोग रवीश कुमार, अभिसार शर्मा और आरफा खानम की पत्रकारिता पसंद करते हैं उसी प्रकार कुछ लोगों को अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी की पत्रकारिता पसंद हैं। दरअसल ये लोग पत्रकारिता बिल्कुल भी नहीं कर रहे हैं बल्कि एक - एक समुदाय को खुश करने में लगे हैं। एक पक्ष खबर को इस प्रकार परोसता है कि वह सरकार के खिलाफ जाती है दूसरा खबर इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि वह सरकार को संजीवनी देने वाली होती है। आप अगर खुश हो रहे हैं कि उनका वाला असल पत्रकारिता कर रहा है तो आप निहायत खुशफहमी में हैं। एक को सरकार की घोर आलोचना के कारण रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिलता है तो दूसरे को घोर समर्थन करने के कारण रामनाथ गोयनका अवॉर्ड। मुझे पता है आप फिर खुश हो रहे होंगे कि उनके वाले को अच्छी पत्रकारिता की कीमत मिली है। दरअसल उपरोक्त दोनों गुटों की पत्रकारिता एक स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है।

कुछ साल पीछे जाएँ तो पहले वाले गुट ने दूसरे वाले गुट को उभरने का खूब मौका दिया। जो कानून व्यवस्था के मामले थे उनके लिए स्थानीय सरकारों पर दबाव बनाकर इंसाफ के लिए प्रयास किए गए होते तो दूसरा वाला गुट पैदा ही न होता। परन्तु हुआ क्या ? एक पार्टी की सरकार बनते ही कुछ लोगों को भारत में डर लगने लगा, असहिष्णुता का प्रपंच रचा गया, अवॉर्ड वापसी की मुहिम चलाई गई। पहले वाले गुट को सरकार का एक भी काम आज तक पसंद नहीं आया। पहले वाले गुट ने अपनी हाँ में हाँ नहीं मिलाने वाले मीडिया संस्थानों को गोदी मीडिया कहा तो उनके समर्थकों को भक्त नामकरण से नवाजना शुरू कर दिया। इन्हीं परिस्थितियों ने दूसरा गुट तैयार किया। दूसरे गुट ने भी अनेक शब्द रचना की। उसकी खबरों में विरोधियों के लिए कामी-वामी जैसे अनगिनत शब्द जगह पाने लगे।

एक बार बैठकर सोचिए कि दोनों की अपनी – अपनी पत्रकारिता से समाज का कितना भला हुआ? जिस पत्रकारिता का काम समाज को जोड़ने और स्वस्थ रखने की होनी चाहिए उसने समाज में एक गहरी खाईं पैदा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। आज ऐसा होने लगा है कि एक के लिए जो खबर है दूसरे के लिए खबर बिल्कुल नहीं है। एक के लिए दो साधुओं की लिंचिंग है तो दूसरे कि लिए वो चोर हैं जिनकी हत्या की गई। आज इतने आत्ममुग्ध हो गए हैं कि हमें अपने – अपने गुट की पत्रकारिता अच्छी लगने लगी है। परन्तु इसके कितने दूरगामी विनाशकारी दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे इसकी कल्पना का विवेक हम लोगों में शायद ही बचा है।



4 टिप्‍पणियां: