बुधवार, 29 अप्रैल 2020

चराग़-ए-इश्क़ जलाने की रात आई है किसी को अपना बनाने की रात आई है-फैज़ रतलामी


चराग़-ए-इश्क़ जलाने की रात आई है
किसी को अपना बनाने की रात आई है


वो आज आए हैं महफ़िल में चाँदनी लेकर
के रौशनी में नहाने की रात आई है

फ़लक का चाँद भी शरमा के मुँह छुपाएगा
नक़ाब रुख़ से उठाने की रात आई है


निग़ाह-ए-साक़ी से पैहम छलक रही है शराब
पियो के पीने पिलाने की रात आई है

-फैज़ रतलामी


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