भारत विश्व गुरू-
1-भारत की भौगोलिक संरचना अन्य देशों से भिन्न जितना ऊंचा हिमालय महान उतना गहरा हिन्द महासागर जैसा शील का; जितना पहाड़ उतना मैदान के बीच मानसूनी जलवायु जिसमें चार ऋतुएँ जो आध्यात्मिक चिंतन के अनुकूल .
2- गंगा जी के जल की अन्य नदियों से भिन्नता ,जिस पर पली-बढ़ी मानव इतिहास की सभ्यता तप,त्याग के पुरूषाथ॔ के बल पर उतपन्न नैसर्गिक ज्ञान जो ऋषि-मुनियों के बार बार ज्ञान से सिद्ध होकर वेद,उपनिषद, पुराण, स्मृतियों, टीकाओं आदि सेआधुनिक एक्ट ,नियम ,उपनियम की तरह एक वसुंधरा पर मानव जाति के लिये जीवन जीने का समाधान देता है .
3- भारत की संस्कृति बसुधैव कुटुम्बकम नीति पर है जो पृथ्वी पर सभी जीव- जन्तुओ को देने के साथ मानव को अपने हिस्से का संसाधन लेने की बात करती है ।क्योंकि संसाधन सदा ही आवश्यकता को ही पूरा कर सकते है इक्षाओ को नही प्रकृती के सरंक्षण पर बल ।राजनीतिक सीमाओं से परे प्राकृतिक संरक्षण पर बल.
4- भारत के संविधान में भी आधुनिक शब्दावली के साथ परम्पराओ को अपनाया गया है जो जरूरत के अनुसार तालमेल बैठाने की क्षमता के साथ है .
5- भारत में राजनीति से ज्यादा राजधर्म की बात की गयी है ।
6-पंथ से जादा धर्म (स्वभाव)को महत्व दिया गया है जिसमे धर्मनीति के पुरूषाथ॔ मे धर्म पर आधारित अर्थ की बात है अर्थात कोई मिलावट नही स्वाभाविक वस्तुएं- सेवाए जो उनका गुण है। अर्थात नैतिकता प्रधान अर्थव्यवस्था जो टिकाऊपन लिये हो .
7- सर्वोदय की गरिमामयी अवधारणा को साकार रूप देने वाली लघुकुटीर मध्यम उद्यमों पर कर्म योगी की हर क्षेत्र मे बल
उपरोक्त "सप्तरत्न" पर ही भारत फिर से दुनिया को मार्ग दर्शन कर सकता है इसके लिये जो जहाँ है कर्म योगी बने जिससे भारत विश्व कल्याण कर सके ।
दूरदर्शिता मे ही मानव जाति की सुरक्षा है।
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