कोरोना वायरस kovid -19 से लड़ाई में होम्योपैथी कैसे नायक की भूमिका निभा सकती है
डब्ल्यू एच ओ कोरोना वायरस के इंफेक्शन को वैश्विक महामारी घोषित कर चुका है । अब तक इसने विश्व के 195 से अधिक देशों को प्रभावित किया है । अब तक पूरे विश्व में 270,000 से ज्यादा लोग पीड़ित हैं और रोज उनकी संख्या बढ़ रही है । रोज एक नया देश इससे प्रभावित भी हो रहा है वहीं 12500 से ज्यादा लोग अपना जीवन गंवा चुके हैं । जहां चीन ने इसे कठोरता के साथ नियंत्रित कर लिया है वहीं यूरोप में यह अनियंत्रित होता प्रतीत हो रहा है।
चीन की सरकार ने अपने वोहान प्रांत की अच्छी तरह घेराबंदी करके कोरोना वायरस को देशभर में फैलने से रोक लिया है । वैसे ही भारतीय सरकार ने पूरे देश की घेराबंदी करके कोरोना वायरस को करीब-करीब नियंत्रित लिया हुआ है। अब तक 300 के आसपास मरीज कोरोना वायरस से पीड़ित अपने देश में चिन्हित हुए हैं उन्हें भी अनेक बाहर से आए हुए। 23 लोग इस रोग से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं। चार मृत्यु हुई है जिसमें एक स्वयं सऊदी अरब से लौटा था दूसरी का पुत्र इटली से कोरोना वायरस लेकर लौटा था। एक ने हॉस्पिटल के छत से कूदकर आत्महत्या कर ली।
भारत में यह पैंडेमिक अभी दूसरे स्टेज में है। पहला स्टेज वह जिसमें किसी संक्रमित देश से कोई संक्रमित व्यक्ति संक्रमण लेकर दूसरे देश में जाता है। दूसरा स्टेज वह जिसमें बाहर से आने वाली संक्रमित व्यक्ति द्वारा
उस घर में कोई व्यक्ति संक्रमित हुआ जिसमें उसने आश्रय लिया। यह दोनों पूरी तरह आईडेंटिफाइड होते हैं
और इन्हें सुरक्षा घेरे में रखा जा सकता है। भारत में ऐसा किया भी गया है। संक्रमण प्रसार का तीसरा चरण वह है जिसमें देश के भीतर संक्रमित हुए लोगों द्वारा संक्रमण पारकर कुछ लोग अचिन्हित रह गए हों। चौथा चरण इन्हीं अचिन्हित लोगों द्वारा संक्रमण का कम्युनिटी प्रसार होना।
तीसरा और चौथा चरण रोग प्रसार की अपेक्षाकृत कठिन अवस्था है। इसमें हमें स्वयं निडर और सतर्क रहते हुए संक्रमण से बचने का प्रयास करना होगा। और संभावित संक्रमण से लड़ने के लिए अपने शरीर की इम्यून सिस्टम को व्यायाम ,जीवन शैली में बदलाव, भोजन में नियंत्रण, एवं कुछ घरेलू आयुर्वेदिक एवं बॉडी इम्यूनिटी को बढ़ाने वाली कुछ होम्योपैथिक औषधियों के सेवन द्वारा स्वयं को तैयार रखा जाय। भीड़-भाड़ से स्वयं को अलग करके, कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर स्वयं को आइसोलेट करके, अथवा नियंत्रण केंद्रों में जाकर इस संक्रमण से लड़ा और हराया जा सकता है। सरकार द्वारा किए जा रहे कई प्रयास अनावश्यक से दिख रहे हैं किंतु सच पूछिए तो इस महामारी को रोकने के लिए वे अत्यंत आवश्यक हैं। हमें उस कार्य में पूरा सहयोग देना होगा। 65 वर्ष से ऊपर के लोगों पर वायरस का दुष्प्रभाव ज्यादा है। ऐसी अवस्था में हम उनका हौसला बढ़ाएं ।बाहर जाने से रोके और घर में ही उनको आनंदित करें।
किसी भी प्रतिद्वंद्वी को हराने के लिए उसकी प्रकृति और शक्तियों को पहले से जान लेना ही सही युद्ध नीति है।
कोरोना वायरस की शक्तियां-
1- प्रकृति और प्रसार- कोरोना वायरस की सबसे बड़ी शक्ति उसके प्रकृति एवं प्रसार के बारे में कम जानकारी का होना है । अमेरिका का आरोप है कि चीन ने फैलाया तो चीन का आरोप है कि उसे कमजोर करने के लिए अमेरिकी सेना ने फैलाया। आज पूरे विश्व को ऐसे विवादों से बचकर इस महामारी से मिलकर लड़ने की जरूरत है और अपने पास उपलब्ध सारे संसाधनों का प्रयोग करके इसके तह में पहुंचने की जरूरत है।
2- निवास और वाहक- कोरोना वायरस कोविड-19 पूर्ववर्ती कोरोनावायरस का नया स्टेन है। कोरोना वायरस पूर्व में सूअर, मुर्गो ,चमगादड़ आदि पशु पक्षियों को आक्रांत करता रहा है। अतः इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अब भी कोविड -19 के पहले घर और वाहक वही जीव हों , और उनके संपर्क में आकर मनुष्य दूसरा वाहक बन गया है। उन पशुओं को पालने पोसने और उनके मांस को पकाने खाने में विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। और उनके अंदर भी इसे ढूंढने का प्रयास छोड़ना नहीं चाहिए। इसके संदर्भ में दुनिया के पास स्मालपॉक्स का उदाहरण मौजूद है। जिसके वायरस को रूस के डेयरी उद्योग में लगे मजदूरों के हाथों पर होने वाले चेचक के दानों की तरह दिखने वाले इरप्संस में पाया गया। वे दूसरी वाहक थे प्रथम वाहक गाय थी जिसकी आंतों से चेचक के वायरस गोबर के साथ बाहर आते थे।
आज कई देशों के राजनीतिज्ञ ,उनकी पत्नियां, राष्ट्रपति, स्वास्थ्य मंत्री जैसे बड़े लोग जिनके रहन-सहन और सुरक्षा की अत्यंत विशिष्ट व्यवस्था होती है, कोरोना वायरस के पॉजिटिव पाए गए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि कोरोना वायरस ने उन पर हमला करने के लिए उनके किचन का प्रयोग किया हो ।और उसके वाहक अनजाने में ही चिकन और सूअर के मांस को धोने काटने पकाने वाले बावर्ची Vector अर्थात वाहक बन गए हों। जैसे कि गोशालाओं में काम करने वाले गाय सेवक cowpox अर्थात स्मालपॉक्स के वाहक बन गए थे। मैं इसे संभावना के रूप में देख रहा हूं जिस पर ध्यान दिया जा सकता है।
3- संचरण- प्रत्येक संक्रामक रोग एक से दूसरे तक पहुंचने में किसी न किसी संचार माध्यम का प्रयोग करता है। जैसे एंथ्रेक्स एयर वार्न है, सीधे हवा के माध्यम से तेजी से फैलता है। जौंडिस, पोलियो और टाइफाइड वाटर वार्न हैं यह दूषित जल के माध्यम से फैलते हैं। वैसे ही चिकन पॉक्स , मिजिल्स, स्मालपॉक्स और अब इस कोरोनावायरस का संचरण पीड़ित के मुंह और नाक से खांसी एवं छींक के साथ निकलने वाली जलीय सूक्ष्म बूंदों द्वारा होता है जो किसी भी सतह पर चिपक जाती हैं जहां से वे हाथ को दूषित कर नाक, मुह, आंख के माध्यम से दूसरे में पहुंच जाती है अथवा नजदीक होने की अवस्था में स्वामी द्वारा दूसरे व्यक्ति द्वारा सीधे इन्हेल कर ली जाती हैं। रोगाणुओं के ड्रॉपलेट्स किचन में छौंक लगाने से उड़ने वाले तेल के ड्रॉपलेट्स को भी अपने संचार का माध्यम बनाते हैं जिसपर चिपक कर वे लंबी दूरी तय कर सकते हैं । यही कारण है कि भारत में किसी भी तरह की चेचक का प्रकोप होने पर घर में तेल का प्रयोग वर्जित कर दिया जाता है। मेरी समझ में कोरोना वायरस की ड्रॉपलेट्स को रोकने के लिए भी तेल का प्रयोग बंद करना चाहिए तभी उसका व्यापक बचाव हो पाएगा।
4- मौसम देशकाल- अब तक 195 से ज्यादा देशों पर प्रहार करने वाले इस वायरस के लिए कोई देश अथवा मौसम का तापमान बाधक नहीं प्रतीत होता। यदि ठंडे देश ज्यादा पीड़ित हुए हैं तो गर्म जगहों पर भी यह फैला है। हां आज अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा एक सूचना अवश्य मिली है की मौसम की ह्यूमिडिटी और गर्मी इसके प्रभाव को सीमित करेंगे। भारत में तेजी से न फैलने का एक कारण यह भी हो सकता है कि यहां अब तक बेमौसम बारिश होती रही है। यही कारण हो सकता है कि आसाम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों में अब तक कोई पॉजिटिव कोरोना वायरस का मरीज नहीं पाया गया है क्योंकि वहां आमतौर पर साल भर ह्यूमिडिटी बनी रहती है। यदि ऐसा हुआ है तो बेमौसम बरसात भी भारत के लिए वरदान साबित हुई है।
5-इनकुबेशन पीरियड ( Incubation period )- यह वह समय है जिसमें कोई वायरस शरीर के अंदर प्रवेश कर अपनी क्षमता का विस्तार करता है। कोरोना वायरस इसमें करीब 14 दिन का समय ले रहा है वह भी बहुत ही चुपके- चुपके। संक्रमित व्यक्ति को पता भी नहीं चल पाता कि वह इसके चंगुल में आ चुका है। बस थर्मल चेक द्वारा अंदाज लगाया जा सकता है, वह भी बस बीमार होने का।
5- समदर्शी- एक कहावत है 'एक तो तीती लौकी वह भी नीम चढ़ी', यही स्थिति कोरोना वायरस के इस संक्रमण काल को लेकर बनी है। सर्दी और सर्दी -गर्मी के मिलन काल में तरह-तरह के रेस्पिरेट्री परेशानियां आने की संभावना बनी रहती है जैसे कॉमन कोल्ड एंड कफ, एलर्जीकल राइनाइटिस, एलर्जीकल ब्रोंकाइटिस, सामान्य बुखार ,और इन्फ्लूएंजा इत्यादि। यह सब कोरोना वायरस जैसा ही प्रारंभिक लक्षण उत्पन्न करके डराने और न डरने पर उसे छुपाने का भी कार्य कर सकते हैं । हत्या इनके लक्षण मिलते ही अपने क्वालीफाई डॉक्टर से संपर्क करें तथा कुछ समय के लिए अपने को आइसोलेट भी कर लें। अनावश्यक पैनिक में ना आएं।
एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में टीकाकरण के अतिरिक्त वायरस प्रभावित रोगों की कोई कारगर चिकित्सा उपलब्ध नहीं है । कोरोना वायरस का अभी तक कोई टीका भी नहीं बना है । इसलिए वे बचाव, कंजरवेटिव ट्रीटमेंट एवं रोगियों के आइसोलेशन पर आश्रित हैं। यही कारण है कि पूरा यूरोप जहां एलोपैथिक चिकित्सा व्यवस्था काफी समृद्ध है कोरोना वायरस को रोक पाने में बुरी तरह असफल सिद्ध हो रही है। भारत, बांग्लादेश ,पाकिस्तान ,श्रीलंका नेपाल, भूटान इत्यादि जहां की जनसंख्या बहुत सघन भी है अभी तक कोरोना वायरस के घातक संघार से अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुए हैं। इसके पीछे वहां प्रयोग किए जाने वाले घरेलू, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक औषधियों का बहुतायत में प्रयोग है। आज सारी दुनिया में होम्योपैथी सबसे ज्यादा भारत में विकसित है और निरंतर आयुष मंत्रालय के प्रयास से उन्नति कर रही है।
( दो-तीन दिनों से एक उत्साहवर्धक खबर आ रही है कि इस रोग के टीका खोजने की दिशा में अमेरिका ,भारत सहित पांच देशों के वैज्ञानिक सफलता के काफी नजदीक पहुंच चुके हैं, डब्ल्यूएचओ ने भी कल सूचित किया कि कोरोना वायरस के टीके का प्रारंभिक परीक्षण प्रारंभ कर दिया गया है)
लक्षण-
सर्दी जुकाम ,बुखार, सर दर्द, बदन दर्द थकान के साथ प्रारंभ होने वाला यह रोग जल्द ही गले को प्रभावित करते हुए( सोर थ्रोट) फेफड़ों तक पहुंच जाता है और वहां एक्यूट ब्राँकाइटिस , ड्राई कफ एवं आखिर में संक्रामक निमोनिया के रूप में आक्रांत कर अत्यंत कठिन रूप धारण कर लेता है। इस रोग में सर दर्द, खांसी ,बुखार एवं श्वसन में परेशानी 15-20 दिन तक बनी रह सकती है और दवाएं काम नहीं करती प्रतीत होतीं।
प्रसार- कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के खांसी और छींक के माध्यम से ड्रॉपलेट के रूप में बाहर आते हैं जहां से वे सीधे अन्य व्यक्ति द्वारा इन्हेल कर लिए जाते हैं अथवा हाथों को संक्रमित कर अन्य तक पहुंच जाते हैं।मुख्यतः शीत ऋतु में एपिडेमिक के रूप में।
बचाव-
1- किसी भी भयावह रोग से बचने का पहला उपाय है भय मुक्त रहा जाए। भय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है और रोग अपना पैर तेजी से फैलाता है।
2- सर्दी से बचने का उपाय किया जाए।
3- साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए अपने हाथ ,शरीर, घर और आसपास की।
सार्वजनिक स्थानों पर रहने वालों को अपने हाथ दिन भर में कई बार साबुन अथवा किसी एल्कोहलिक डिसइनफेक्टेंट से साफ करते रहना चाहिए।
4- जहां रोग फैला हो अथवा फैलने की संभावना हो उन सार्वजनिक स्थलों पर मास्क लगाया जाए और छींकते , खांसते समय मुंह पर कपड़ा रखा जाए।
5- ज्ञात संक्रमित मरीजों को आइसोलेट किया जाए।
समतुल्य लक्षणों वाले रोगों की अवस्था में भी स्वयं को संरक्षित किया जाए।
6- व्यायाम, योगासन, प्राणायाम द्वारा शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्यून)को बढ़ाया जाए।
7- अच्छी तरह धुली हुई हरी सब्जियों का प्रयोग किया जाए । मांसाहार का सेवन एकदम न करें ।
8- आक्रांत स्थानों पर सर्दी ,जुकाम सर दर्द बदन दर्द गले में खराश के लक्षण दिखते ही तुरंत चिकित्सीय सलाह ली जाए।
9- हाथों का सैनिटाइजेशन अत्यधिक आवश्यक है क्योंकि इस वायरस के ड्रॉपलेट्स प्रयोग की जा रही वस्तुओं मेज कुर्सी हैंडल फोन इत्यादि पर घंटों जीवित रहते हैं जो हाथों के माध्यम से मुंह और नाक तक पहुंच सकते हैं इसलिए यदि हम सार्वजनिक स्थलों पर हैं तो बार-बार साबुन से हाथ धो कर अथवा किसी ऐसे सैनिटाइजर जिसमें 65% से ज्यादा अल्कोहल हो का दिन में कई बार प्रयोग करें।
10- भारत में चेचक होने पर तेल का प्रयोग छौंक आदि के लिए बंद कर दिया जाता है इसके पीछे चेचक का इंफेक्शन भी ड्रापलेट द्वारा होना है ,जिससे बचाव के लिए भारत का आम नागरिक ऐसा करता रहा है। वैसे ही कोरोना वायरस के ड्राप्लेट्स भी तेल के ड्रॉप्लेट्स पर चिपक कर घर के अन्य सदस्यों तक पहुंच सकते हैं ऐसी अवस्था में तेल का सेवन और छौंक को सीमित किया जा सकता है।
आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति में इस वायरस के रोकथाम और इलाज की कारगर औषधियां उपलब्ध हैं । जहां आयुर्वेद में गिलोय, तुलसी, अणूस, काली मिर्च ,छोटी कटेरी, हल्दी, मुलहेठी ,लिसोढ़, इत्यादि से बनी हुई दबाएं एवं काढ़ा स्वसन तंत्र को मजबूत करने वाली एवं रोग मुक्त करने वाली कारगर औषधियां हैं। वहीं होम्योपैथी में उपरोक्त आयुर्वेदिक औषधियों के मदर टिंक्चर क्रमशः टीनेस्पोरा कार्डिफ़ोलिया, आसिमम सैंक्टम, जस्टिसिया अधाटोडा,पाइपर नाइग्रा, सोलेनम जैन्थोस्पर्मम एवं कुरकुमा लौंगा, अजाडिरेक्टा इन्डिका , कैलेंडुला ऑफिसिनलिस इत्यादि के नाम से उपलब्ध हैं। इन औषधियों का उपयोग आंतरिक और बाह्य दोनों तरह से किया जा सकता है। इनका उपयोग अत्यंत कारगर साबित होगा ।
लाक्षणिक चिकित्सा पर आधारित होम्योपैथी कोरोना वायरस से आक्रांत मरीजों की चिकित्सा में सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती है। तथा रोग प्रारंभ होने से पूर्व भी इसकी कुछ औषधियों के प्रयोग से रोग से बचा रहा जा सकता है।
बचाव के लिए उपयोगी होम्योपैथिक औषधियां-
Prophylactic Homeopathic medicines-
1-
थूजा THUJA 1M , यह होम्योपैथी की मुख्य वायरस प्रतिरोधी औषधि है । साथ ही सर्द हवाओं से होने वाले किसी भी रोग से बचाव भी करती है। संक्रमित जगहों पर रहने वालों को यह दवा महीने में एक बार पूरे संक्रमण काल में लेते रहना फायदेमंद होगा।
2-
इग्नेशिया Ignatia 200, इस औषधि का हफ्ते में एक बार सेवन कोरोना वायरस के भय से मुक्त रखने में कारगर होगा। किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहेगी जिससे उसके ऊपर इस रोग का प्रभाव बहुत सूक्ष्म अथवा नहीं होगा।
3-
आर्सेनिक अल्ब ARSENIC ALB 30 अथवा 200, यह औषधि ठंड से होने वाले सर्दी, जुकाम ,बुखार, निमोनिया की कारगर औषधि तो है ही । साथ ही गोश्त खाने से होने वाली प्रकोपों के लिए महौषधि है। यह औषधि इसे लेने वालों के अंदर व्यवस्था एवं सफाई के प्रति स्वतः ही सजगता उत्पन्न करने की क्षमता रखती है जो कोरोना वायरस से बचने के लिए फायदेमंद होगा। संक्रमित एरिया में इसका 1 दिन नागा करके एक खुराक लेना कारगर साबित होगा।
4-
न्यूमोकोकिनम PNEUMOCOCCINUM 200, यह दवा अकेले कोरोना वायरस की रोकथाम में कारगर सिद्ध हो सकती है ।इस औषधि को संक्रमण काल में 15 दिन में एक खुराक लेना उपयुक्त रहेगा।
रोग उत्पन्न होने के बाद लक्षणानुसार होम्योपैथिक औषधियां-Aconite nap 30.Arsenic alb 30, Antim ars 30, Hepar sulph30,200, Arsenic Iod 30 , Dulcamara 30, Lycopodium200, Bryonia Alb 30,, Lachesis30,200 ,Phosphorus 30,Antim tart 30, Causticum 200, ऐंटिम सल्फ30, Opium30,Pneumococcinum200, 30,Aspidosperma Q&30, Hepatica30, Sangunaria can इत्यादि , रोग भय से पीड़ित होने पर Ignatia 200 एक खुराक ।
होम्योपैथिक औषधियां अलग अलग मौसम तापमान और परिस्थितियों के अनुसार भी काम करने में सक्षम हैं । अलग-अलग प्रकृति ,भोजन, परिस्थितियों के आधार पर भी होमियोपैथिक औषधियों का चुनाव निश्चित होता है। इस तरह यह संक्रमण किसी भी तापमान वाले जगहों पर कभी भी क्यों न फैले उसकी कारगर लाक्षणिक चिकित्सा देने वाली अनेक औषधियां होम्योपैथी के पास सुलभ हैं ।
19वीं शताब्दी के प्रारंभ में जब प्ले सारी दुनिया में फैल गया तब होम्योपैथी की एक औषधि इग्नेशिया ने उस भयानक महामारी से सारी दुनिया का बचाव किया ।वैसे ही अमेरिका में पशुओं पर जब ऐन्थ्रेक्स का हमला हुआ तो उसके निजोड से वहां के एक पशु चिकित्सक डॉक्टर लक्स ने ऐन्थ्रेसाइनम नामक होमियोपैथिक दवा बनाकर प्रयोग किया । जिसके प्रयोग से अमेरिका की पशु संपदा एवं अर्थव्यवस्था नष्ट होते होते बच पाई। ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जिनके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि होम्योपैथी कोरोना वायरस को विज्ञान कोविड-19 से लड़ने में अग्रणी भूमिका निभा सकती है । हम इसके लिए पूरी तरह प्रयास कर भी रहे हैं। भारत में तो आयूष मंत्रालय ने इसके लिए कमर भी कस लिया है।(कोरोना नोजोड्स से भी होमियोपैथिक औषधि बनाईं जा सकती है ।)
इन दिनों जर्मनी, फ्रांस ,अमेरिका और यूरोप के अधिकांश देशों ने कुछ खड़यंत्रों के कारण होम्योपैथिक काफी पीछे कर दिया है जिसका खामियाजा वह आज भुगत रहे हैं।
मेरी तरफ से मानवता की भलाई के लिए यह अनुरोध है कि इस कठिन परिस्थिति में दुराग्रहों को भुलाकर होम्योपैथिक औषधियों का एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के साथ ही पॉजिटिव रोगियों पर प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही जल्दी और पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा सकता है ।और होम्योपैथी पूरी तरह जन स्वास्थ्य की अग्रणी चिकित्सा पद्धति बन सकती है। जो जीव जगत के लिए वरदान होगा।
नोट- उपरोक्त औषधियों को होम्योपैथिक चिकित्सकों की राय पर ही लिया जाना चाहिए।
डॉ एम डी सिंह,
प्रबंध निदेशक,एम. डी. होमियो लैब प्रा.लि.
महाराज गंज, गाजीपुर यू.पी.भारत .
9839099260,9839099261,9839099251
Website- www.mdhomoeolab.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें