शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

वो छतों पर कई पत्थर जुटाए बैठे हैं- कवि गौरव चौहान इटावा

हम गलियों प्यार के मंज़र जुटाए बैठे हैं
वो छतों पर कई पत्थर जुटाए बैठे हैं

हम यहां उलझे रहे सेकुलर के धागों में,
वो तो अलकायदा लश्कर जुटाए बैठे हैं

हमने रसखान कबीरा की पोथियाँ बाँची,
वो तो भड़काऊ मुनव्वर जुटाए बैठे हैं

हमने तहज़ीबे लखनऊ का भरम रक्खा था,
वो तो लाहौर पिशावर जुटाए बैठे हैं

गंगा जमुनी इलाहाबाद सरीखे थे हम,
वो तो बगदाद का तेवर जुटाए बैठे हैं

हम तो चुपचाप रहे राम की फतह पर भी
वो नागरिकता पे बवंडर जुटाए बैठे हैं

हम हमीदो कलाम की सजाएं तस्वीरें,
वो तो अफ़ज़ल के कलेंडर जुटाए बैठे हैं

----कवि गौरव चौहान इटावा 9557062060

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