मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

प्रत्यक्ष से कई गुना ताकतवर परोक्ष, हमारे पापा की सीख -प्रवीन तिवारी पेड़ बाबा ग़ाज़ीपुर

प्रत्यक्ष से कई गुना ताकतवर परोक्ष, हमारे पापा की सीख ::--
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    सात आठ वर्ष पहले झाड़ू हमारे हथियार हुआ करता था और रोज हमारे साथ चार पाँच घंटे रहता था । बारी बारी से हम किसी न किसी गाँव की गंदी गलियों को खोजते और तबतक साफ करते रहते जबतक वह गली उस गाँव की सबसे साफसुथरी गली न बन जाए ।
उसे दौरान हमारे गाजीपुर स्थिति घर के समीप एक चौराहा भी बहुत ही गंदा हुआ करता था और हमेशा ही हमारा मन होता था कि क्यों न यहाँ भी सफाई अभियान चलाकर लोगों को इतना जागरूक कर दिया जाए कि चौराहा बिल्कुल ही साफसुथरा दिखने लगे ।
    एक दिन हम इसी विषय पर अपने पापा से चर्चा करने लगे और उनसे पूछे कि हम ऐसा क्या करें कि लोगों में चौराहे की सफाई के प्रति जागरूक बढ़े तो हमारे पापा तपाक से बोले कि तुम रोज दो बजे रात में अकेले ही जाकर सफाई में जुट जाया करो और भोर के चार बजे तक वहाँ से वापस आ जाया करो जिससे कि कोई भी तुमको सफाई करते न देख सके ।
    हमें उनकी बातों पर चिढ़ आया कि हम अभियान चलाने की बात कर रहे हैं और यह हमें अकेले ही अंधकार में जाकर सफाई करने को बोल रहे हैं । आखिर सफाई अभियान का प्रचार प्रसार कैसे होगा । उस समय न तो कैमरा होगा न ही लोग होंगे न ही मिडिया होगा ।
   फिर भी हमें उनमें श्रद्धा थी तो हम उनकी बातों को मान लिये ।
    उस वक्त दिसम्बर का महीना था और हम चालिस दिन तक चौराहे की सफाई का संकल्प ले लिए । अगले दिन झाड़ू, तगाड़ी और फावड़ा लेकर हम चौराहा पर रात के दो बजे पहुँच गए और चार बजे तक सफाई करते रहे । गंदगी बहुत ही अधिक था । इसप्रकार हमारे बीस दिनों के लगातार सफाई से चौराहा बिल्कुल ही साफ दिखने लगा । अभी भी शाम को दुकान बंद करने के दौरान दुकानदार अपने दुकान का कूड़ाकचरा अपने दुकान के बाहर ही छोड़ देते थे । लेकिन अगले दिन से वह गंदगी भी साफ । तीस दिन बीते होंगे कुछ लोग चौराहा पर रात्रि जागरण करके सफाई करने वाले को खोजने लगे । हम जब रात्रि के दो बजे पहुँच कर झाड़ू लगाना शुरू किये तो चारपाँच लोग आकर हमें घेर लिए । उस दौरान हम अपने मुँह को मोफलर से ढके थे लह लोग हमारे मोफलर को हटवाकर अस्पष्ट रूप से हमारा चेहरा देखे । फिर क्या था यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई । जब हम अगले दिन पहुँचे तो हमें कहीं भी गंदगी का नामोनिशान नहीं मिला ।
फिर भी संकल्पानुसार हम सफाई करते रहे । उतनी रात में चार पाँच लोग झाड़ू लेकर हमारा साथ देने के लिए आने लगे । धीरे धीरे यह खबर तत्कालीन जिलाधिकारी तक पहुँचा और वह अपने मद से चौराहा का सुंदरीकरण करवाए ।
   इसप्रकार हमारे पापा हमें यह एहसास दिलवाए कि प्रत्यक्ष से अधिक ताकतवर परोक्ष होता है ।
    आज हमारे पापा प्रत्यक्ष रूप से तो हमारे साथ नहीं हैं परंतु अपने दिये हुए सीख से हमें यह एहसास दिलवा रहे हैं कि वह और ताकतवर ढंग से हमारा साथ देंगे ।

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