सोमवार, 19 मार्च 2018

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे


मंगलवार, 13 मार्च 2018

भारतीय किसान की दुर्दशा - लव तिवारी

कौन दर्द सुनेगा तेरा, अब नही घाव दिखाने को
देश की इस धरती पर, बचा न कुछ और गवानें को 

भारत की मर्यादा को संभाले देश का एक किसान ही है,
 देश की धरती सोना उगले उसका एक अरमान भी है,

 बिलख रहा है आज किसान, फूल बना अंगारे जो 
अन्न ,जीवन नही होगा धरती पर, लोग मरेगे दाने को

राजनीति में पिसता रहता ,देश का नेक किसान भला 
देश का नेता दुखड़ा रोये, इससे फर्जी इंसान कहाँ 

झेले सीने पर कहर प्रकृति का, फिर झेले राजनीति को
 देश का सच्चा किसान यहाँ, फिर खेले मौत की कहानी को


प्रस्तुति - लव तिवारी
संपर्क सूत्र- +91-9458668566
 Visit- www.lavtiwari.blogspot.in


मंगलवार, 6 मार्च 2018

वायु मुद्रा सूर्य मुद्रा ज्ञान मुद्रा ध्यान मुद्रा- युश महाराज







सूर्य का अर्थ होता है अग्नि,  सूर्य मुद्रा को करने से हमारे भीतर के अग्नि तत्व संचालित होते हैं। सूर्य की अँगुली अनामिका को रिंग फिंगर भी कहते हैं। इस अँगुली का सीधा संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से होता है । सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंतर्ज्ञान और बदलाव का प्रतीक है। सूर्य को सेहत और उर्जा का प्रतीक माना जाता है। सूर्य मुद्रा को लोग अग्नि मुद्रा के नाम से भी जानते हैं।



यह मुद्रा पृथ्वी मुद्रा के विपरीत है । यह मुद्रा सूर्य के गुणों का हमारे शरीर में विस्तार करती है तथा पृथ्वी तत्व की अधिकता को कम करती है ।



वायु मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में वायु का संतुलन बना रहता है । आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर के अंदर चौरासी तरह की वायु होती है और वायु चंचलता की निशानी है वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है इसलिए मन को एक ही जगह स्थिर रखने के लिए वायु-मुद्रा का अभ्यास किया जाता है माना जाता है की जब तक शुद्ध वायु शरीर को प्राप्त नहीं हो जाती तब तक हमारा शरीर रोगी रहता है । शरीर को रोगों से बचाने के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाता है ।  सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है। चलिए जानते



अपने हाथ की तर्जनी उंगली को अपने अंगूठे से मिला लें लेकिन उंगली और अंगूठा सिर्फ एक-दूसरे को हल्के से छूते हुए ही हों उन पर दबाव नहीं पड़ना चाहिए। इसमें हाथों की आकृति ज्ञान मुद्रा जैसी बनती है इसीलिए इसे ध्यान ज्ञान मुद्रा  कहा जा सकता है। ध्यान मुद्रा  से लाभ-. इस मुद्रा को करने से दिमाग तेज होता है। मन को एक जगह लगाने वाली याददाश्त तेज होती है तथा नींद न आना और तनाव जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं।


ब्रह्मचर्य और योग-साधना मूलबंध आसन युश महाराज







आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है।

40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है।

एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है । जिस प्रकार पूरे गन्ने में शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहता है।



सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते है ।।



ब्रह्मचर्य और योग-साधना मूलबंध आसन  यह आसन यौन विकारों से संबंधित कई प्रकार की समस्याओं में लाभकारी होता है, इसीलिए इसे गुप्तासन कहते हैं। यह सेक्सुअल प्रोब्लेम्स के लिए बहुत ही मुफीद आसन है। इस आसन के अभ्यास से विभिन्य प्रकार के सेक्स समस्याएँ का समाधान किया जा सकता है। यह विभिन्य प्रकार के बीमारी जैसे स्वप्नदोष, वीर्यदोष, वीर्य चंचलता, मूत्र-संबंधी बीमारी, गुदा की बीमारियाँ इसके अभ्यास से ठीक हो जाती है|