शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

तुमको देखूं और फिर सोचूँ न तुमको अपना पाऊँ लव तिवारी

तुमको देखु और फिर सोचु ,न तुमको अपना पाऊँ
ये कैसी है रीत यहाँ की, साथ तुम्हारे जा न सकु

प्यार भरा ये मौसम है और तन्हा मेरा जीवन
ख्वाब के वो सुने पल को मैं तुमसे बतला न सकु

मेरा जीवन मेरी कविता मेरे सब कुछ तुम्ही हो
है दुनिया की एक हक़ीक़त मैं तुमको दिखा न सकूँ

आओ अब हम साथ चले दुनिया की रंजिश छोड़कर
प्यार भरे इस जीवन के कुछ पल तुम्हारे साथ जियूँ

आँखों को एक नरमी और चेहरे की अदायगी
बिन कहे सब बात मैं समझो पर तुमको न समझा पाऊँ

रचना- लव तिवारी
27-07-2017


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