रविवार, 2 अप्रैल 2017

कौन सुनेगा किसको सुनाये - लव तिवारी

दिल्ली, गुरुग्राम, नॉएडा, मुंबई, पुणे, बंगलुरु 
मिनी इंडिया को रिप्रेजेंट करते हैं...

एक ही पल में जहां एक तरफ बहुमंजिला इमारतों की बालकनियों में 
चाय की चुस्कियां चल रही होती हैं...
तो दूसरी ओर उसी बिल्डिंग के बराबर वाले स्लम में 
रोते बिलखते बच्चों की आवाज के बीच एक बैचैन माँ 
चूल्हे पे कुछ पकाने की जद्दोजहद में होती है..

कोई एक कान पे फ़ोन लगाए और दूसरे कंधे पे लैपटॉप बैग टाँगे 
घर जाने के लिए ऑटो पकड़ने भाग रहा होता है..
तो दूसरी तरफ उस भागते हुए आदमी 
और उस ऑटो वाले को सूनी सी आँखों से देखते 
5 रिक्शेवाले खड़े होते हैं..
जिनके घुटने कभी भी उनको धोखा दे देंगे..
और इस गर्मी में लू से ज्यादा फ़िक्र उन्हें 
शाम के लिए अपने परिवार का पेट भरने की होगी..

एक तरफ अहातों के बाहर फॉर्चूनर लगाए 
"बापू जमींदार" सुनते हुए नशे में चूर लोग होंगे..
तो दूसरी तरफ उन्ही फॉर्चूनरों में टिक्के पहुंचाते और कम प्याज लाने पे गालियां खाते 
10 12 साल के बच्चे..

एक तरफ नाईट आउट पे निकले शोहदे शोहदियां हैं 
तो दूसरी तरफ इसी रात में फुटपाथ के किनारे 
चादर तान के सोने की कोशिश करते बिन पते बिन नामों वाले लोग..

ये कंट्रास्ट ही शायद इन शहरों की हकीकत है...
शायद यही हकीकत हमारे देश की भी है..
कोई बारिश के इन्तजार में दुखी है..
तो कोई बारिश के आ जाने से..
कोई २ घंटे के पावर कट से ही दुखी है 
तो किसी की किस्मत में एक पंखा तक नहीं है..

इन सब बातों को डिस्कस करने का कोई मतलब नहीं है..
ना ही इसका समाधान मेरे पास है..
पर भगवान् ने भाव ही ऐसा दिया है कि 
ये सब अनदेखा करके भी अवचेतन मन में रह जाता है..

कई बार यूँही ऑटो पकड़ने भागते भागते ठिठक जाता हूँ..
और उन सूनी सी आँखों वाले रिक्शेवालों की आँखों में 
मुझे अपनी तरफ आता देख थोड़ी सी चमक बढ़ जाती है..

तीज त्यौहार पे यूँही अपनी मेड..चौकीदार..और कार साफ़ करने वालों को 
500 500 रुपये का बोनस दे देता हूँ...

और अपने फ्लैट की बालकनी से 
झुग्गियों में खेलते बच्चों को देख तीरथ महसूस कर लेता हूँ...

मैं समस्याओं को समझ रहा हूँ..
और अपनी हैसियत के हिसाब से योगदान देने की कोशिश कर रहा हूँ..
मैं इस बदलते #भारत का युवा हूँ..
मैं अपने साथ और भी बहुत सपनों को सच करना चाहता हूँ...

मुझे उम्मीद है मैं और आप एक ही हैं..



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