बुधवार, 10 अगस्त 2016

बेवफाई को भी तेरे एक राज रखा है मैंने

बेवफाई को भी तेरे, इक राज रखा हैं मैंने,
बेपनाह मोहब्बत का ये #अंदाज रखा हैं मैंने।

गनीमत हैं ये कलम भी तुझसे बदतमीजी करें,
मेरी शायरी में भीे तेरा, लिहाज रखा हैं मैनें।

छलकती हैं आज भी कभी तनहाई मेेें आँखे,
तो लगता हैं की तुझे ही, नाराज रखा हैं मैंने।

तुझे खोकर जैसे, खौफ-ए-खुदा भी न रहा,
तेरे बाद तो यही अपना मिजाज रखा हैं मैंने।

'मोहब्बत' के मायने भी तुझसे ले के तुझी पे थे,
अब तो मेरे पास सिर्फ ये अल्फाज रखा हैं मैंने।

रचना -अज्ञात


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