एक प्यारा सा गांव जिसमे पीपल की छाव
छाव वो आशिया था एक छोटा मका था I
छोड़ कर गांव को उसी घनी छाव को
शहर के हो गए हैं भीड़ मैं खो गए हैं II
ग़ज़ल- चंदन दास
एक छोटी सी लाइन के साथ हम फिर चलते है अपने गाव् की कुछ पूरानी यादो के सफ़र मैं शहर से 6 से 7 किलो मीटर पर बसा मेरे प्यारा सा गाँव जिसमे साहित्य कला खेल पुराणी परम्परा का पूर्ण रूप से समावेश है गंगा मैया की लहरो मैं वो संगीत की घुन और लहलहाते खेतो के बीच वो चिड़ियों और कुछ छोटे पशुओ की आवाजें जो कभी न कभी इस गीत की याद दिलाये है जो हमारे चाचा जी के द्वारा लिखी गयी है
रही रही खूब हिलोरे गंगा जी के पनिया...
-Yogesh Vikrant
http://kushtiwari.blogspot.in/…/rahi-rahi-khoob-hilore-gang…
आज हम आप को अपनी दिनचर्या का बाय करेगे जो हम गाओं मैं रह कर किया करते थे I सुबह सूर्य की लालिमा के साथ विस्तर को छोड़ कर जब हम खेतो की शेर कराते थे तो एक अजब सी खूश्बू जो दिल को सकूँन पहुचती थी स्कुल से लौटने के बाद खेल खेलने मैं हम सब के द्वारा बहुत से नुकशान किये जाते थे चाहे वो कोई मौसमी फसल हो या फिर कोई छोटी वस्तु नुकसान के नुकसान के बाद दादा जी के सामने पेश होने का भी सजा मज़ा कुछ और ही था I
एक गीत जो हमारे सरे कर्मो को बया करता है I
केतना बखान करी गउवा जवार के
माटी के खुसबू और पूर्वी बयार के
माई के अचरा के केतना बखानी
बाबू जी के साथै घुमी खेत खरिहानि
होखे खूब ओल्हा पाती हर अतवार के
माटी के खुसबू और पुर्बी बयार के
गाँव के कुछ तस्वीरो के साथ और पुरानी यादो के साथ ये पोस्ट किया है पसंद आए तो ज़रूर लाइक और कॉमेंट कीजिएगा
धन्याबाद प्रस्तुति - Lav Tiwari
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