नजरे-मुहब्बत का बस इतना है फसाना
हम तुझे देखते हैं, हमें देखे है जमाना...
दलदल भरे रिश्तों से बचके निकल चले,
कसम खाए हैं, अब खुद को नहीं रुलाना...
चांद की तन्हाई में अब यूं खो चुकी हूं मैं,
ऐ सितारों अपनी भीड़ में हमको न बुलाना...
दर्द की लहरों से जब भीगती है ये आंखे,
बहुत मुश्किल होता है समंदर को छुपाना...
हम तुझे देखते हैं, हमें देखे है जमाना...
दलदल भरे रिश्तों से बचके निकल चले,
कसम खाए हैं, अब खुद को नहीं रुलाना...
चांद की तन्हाई में अब यूं खो चुकी हूं मैं,
ऐ सितारों अपनी भीड़ में हमको न बुलाना...
दर्द की लहरों से जब भीगती है ये आंखे,
बहुत मुश्किल होता है समंदर को छुपाना...
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