शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

देख कर तस्वीर तेरी जमाना भूल जाते है ,

देख कर तस्वीर तेरी जमाना भूल जाते है ,
खुशी इतनी होती है कि मुस्कुराना भूल जाते है।।
पोंछते रहते है बहते अश्क जमाने भर के ,
अपनी आँखो के आँसू दिखाना भूल जाते है।।
हजारो बाते समझाते रहते है दुनियाभर को ,
बस अपने आप को समझाना भूल जाते है।।
यह अँधेरा भी खुश रहता है रातो का मेरी ,
चराग रखे रहते है और जलाना भूल जाते है।।
आँधियो मे भी रौशन रहता है सदा वजूद मेरा ,
दिल के जलते दिये तूफान मे बुझाना भूल जाते है।।
वो समझ नही पाते मेरी नजरों की चाहत,
मूझे उससे मोहब्बत है हम बताना भूल जाते है।।