आईने सा बिखरे पर पत्थर तरस नहीं खाते
जिस्म ज़ख्मी है पर खंज़र तरस नहीं आते,
जिस्म ज़ख्मी है पर खंज़र तरस नहीं आते,
होते एक बराबर के तभी मिलता है मांगे से
सूखे हुए दरिया पर समंदर तरस नहीं खाते,
सूखे हुए दरिया पर समंदर तरस नहीं खाते,
लुटते लुटते बाकी रहा ना है कुछभी लेकिन
भारत पे नेता रूपी सिकंदर तरस नहीं खाते,
भारत पे नेता रूपी सिकंदर तरस नहीं खाते,
ख्वाबों में आके डरा देते हैं आज भी मुझको
दिल दुखाने वाले यह मंजर तरस नहीं खाते,
दिल दुखाने वाले यह मंजर तरस नहीं खाते,
कैसे बनता है आशियाँ बेघर हैं क्या जाने ये
घोंसला मिटाने में यह बंदर तरस नहीं खाते,
घोंसला मिटाने में यह बंदर तरस नहीं खाते,
चढ़वाकर खून ही बच पायी है ज़िंदगी उसकी
मगर लहू पीने में ये मच्छर तरस नहीं खाते,
मगर लहू पीने में ये मच्छर तरस नहीं खाते,
पैसे सेही मिलती हमने ज़िंदगी देखी है खुदा
मुफ़लिस बीमारों पर डॉक्टर तरस नहीं खाते,
मुफ़लिस बीमारों पर डॉक्टर तरस नहीं खाते,
रोज़ चीर हरण होता द्रोपदियों का यहां
खड़े देखते आज के गिरधर तरस नहीं खाते--
खड़े देखते आज के गिरधर तरस नहीं खाते--
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