सर जिसका किसी पल भी हमने ना उठा देखा
उस शख्स के क़दमो में हर सर को पड़ा देखा.
साक़ी-ओ-शराबी का कुछ भेद नहीं मिलता
हर एक कि आँखों में हमने तो नशा देखा.
काशी थी कि काबा था क्या इससे हमें मतलब
जब झाँक लिया दिल में हमने तो ख़ुदा देखा.
इक बार जो डूबे तो ताउम्र नहीं निकले
उन झील सी आँखों में मत पूछिए क्या देखा.
दरबार-ए-मुहब्बत के आदाब निराले हैं
शाहों को गदाओं कि चौखट पे खड़ा देखा.
उस शख्स के क़दमो में हर सर को पड़ा देखा.
साक़ी-ओ-शराबी का कुछ भेद नहीं मिलता
हर एक कि आँखों में हमने तो नशा देखा.
काशी थी कि काबा था क्या इससे हमें मतलब
जब झाँक लिया दिल में हमने तो ख़ुदा देखा.
इक बार जो डूबे तो ताउम्र नहीं निकले
उन झील सी आँखों में मत पूछिए क्या देखा.
दरबार-ए-मुहब्बत के आदाब निराले हैं
शाहों को गदाओं कि चौखट पे खड़ा देखा.
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