मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?



मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?

हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते?

ये रात, ये तनहाई, ये सुनसान दरीचे

चुपके से मुझे आके सदा क्यों नहीं देते।

है जान से प्यारा मुझे ये दर्द-ए-मोहब्बत

कब मैंने कहा तुमसे दवा क्यों नहीं देते
गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो

हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते।

सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

हे भगवान अब तो फिल्मो को दुनिया छोड़ दो भारतीय पॉलीटिक्स पर भी नजर डालो.

सुबह से लोगो के मोबाइल फ़ोन पे एक मैसेज घूम रहा है .यदि सच साबित हो जाय तो मित्रो अपने देश में क़यामत आ जाएगी ..आईये मैसेज को पढ़ते है 
देवानन्द को उठा लिया, शम्मी कपूर को उठा लिया ,राजेश खन्ना को उठा लिया ,जगजीत सिँह को बुला लिया, दारा सिँह को बुला लिया, मेहदी हसन को बुला लिया , ए के हंगल को बुला लिया .और तो और रोमांस किंग यश चोपड़ा को भी उठा लिए वो मच्छर के काटने से , काला हिट भी नहीं दिया था बचाव के लिए ........

हे भगवान
अब तो फिल्मो को दुनिया छोड़ दो भारतीय पॉलीटिक्स पर भी नजर डालो............यहाँ पे भी बहुत से ऐसे वीर है जिन्हें आपको जरुरत होगी

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

सर जिसका किसी पल भी हमने ना उठा देखा उस शख्स के क़दमो में हर सर को पड़ा देखा.

सर जिसका किसी पल भी हमने ना उठा देखा

उस शख्स के क़दमो में हर सर को पड़ा देखा.


साक़ी-ओ-शराबी का कुछ भेद नहीं मिलता


हर एक कि आँखों में हमने तो नशा देखा.


काशी थी कि काबा था क्या इससे हमें मतलब


जब झाँक लिया दिल में हमने तो ख़ुदा देखा.


इक बार जो डूबे तो ताउम्र नहीं निकले


उन झील सी आँखों में मत पूछिए क्या देखा.


दरबार-ए-मुहब्बत के आदाब निराले हैं


शाहों को गदाओं कि चौखट पे खड़ा देखा.

वो वफ़ाओं का मेरी यूँ भी सिला देने लगे,

वो वफ़ाओं का मेरी यूँ भी सिला देने लगे,

मुश्किलों के वक़्त में वो हौसला देने लगे,

जब अदब से कर लिया मैंने बुज़ुर्गों को सलाम,

हाथ मेरे सर पे रख के वो दुआ देने लगे,

प्यार से सींचा है मैंने जिन दरख्तों को ऐ दोस्त,

माँ के आँचल की तरह ठंडी हवा देने लगे।

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

कभी नज़रें मिलाने में लम्हे बीत जाते है , कभी नज़रें चुराने में जमानें बीत जाते हैं |


कभी नज़रें मिलाने में लम्हे बीत जाते है ,
कभी नज़रें चुराने में जमानें बीत जाते हैं |

किसी ने आँख भी खोली तो सोने की नगरी में ,
किसी को घर बनाने में जमाने बीत जाते हैं |

कभी काली गहरी रात हमें एक पल की लगती है,
कभी एक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं |

कभी खोला दरवाजा खड़ी थी सामने मंजिल ,
कभी मंजिल पाने में जमाने बीत जाते हैं |

एक पल में टूट जाते हैं उम्र भर के "वो रिश्ते ",
"वो रिश्ते " जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं |


हवा का ज़ोर भी काफ़ी बहाना होता है अगर चिराग किसी को जलाना होता है।



हवा का ज़ोर भी काफ़ी बहाना होता है
अगर चिराग किसी को जलाना होता है।

ज़ुबानी दाग़ बहुत लोग करते रहते हैं,
जुनूँ के काम को कर के दिखाना होता है।

हमारे शहर में ये कौन अजनबी आया
कि रोज़ सफ़र पे रवाना होता है।

कि तू भी याद  नहीं आता ये तो होना था
गए दिनों को सभी को भुलाना होता है।

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना , हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।

उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।

छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।

उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।

वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।

हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।

मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना.