मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

कभी नज़रें मिलाने में लम्हे बीत जाते है , कभी नज़रें चुराने में जमानें बीत जाते हैं |


कभी नज़रें मिलाने में लम्हे बीत जाते है ,
कभी नज़रें चुराने में जमानें बीत जाते हैं |

किसी ने आँख भी खोली तो सोने की नगरी में ,
किसी को घर बनाने में जमाने बीत जाते हैं |

कभी काली गहरी रात हमें एक पल की लगती है,
कभी एक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं |

कभी खोला दरवाजा खड़ी थी सामने मंजिल ,
कभी मंजिल पाने में जमाने बीत जाते हैं |

एक पल में टूट जाते हैं उम्र भर के "वो रिश्ते ",
"वो रिश्ते " जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं |

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Lav Tiwari
lvtiwari551@gmail.com
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Ph: 09458668566






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