दिल के हाथों मजबूर हो गए,
हम जितना पास आये वो दूर हो गए,
कुछ हसीं ख्वाब पाले थे पलकों पे,
खुली जो आंख तो देखा सब चूर हो गए,
न गिला है उनसे न खुदा से शिकायत,
ये नसीब था अपना के हम मजबूर हो गए,
हम तो चाहते रहे उन्हें दिल ही दिल में,
हमें मालूम ही न हुआ वो इतना मगरूर हो गए
ये सवाल है खुदा से, क्या खता थी हमारी,
जो हर ख़ुशी से हम महरूम हो गए...!!
हम जितना पास आये वो दूर हो गए,
कुछ हसीं ख्वाब पाले थे पलकों पे,
खुली जो आंख तो देखा सब चूर हो गए,
न गिला है उनसे न खुदा से शिकायत,
ये नसीब था अपना के हम मजबूर हो गए,
हम तो चाहते रहे उन्हें दिल ही दिल में,
हमें मालूम ही न हुआ वो इतना मगरूर हो गए
ये सवाल है खुदा से, क्या खता थी हमारी,
जो हर ख़ुशी से हम महरूम हो गए...!!